

योगासन व व्यायाम में अंतर आप सोच रहें होंगे योगासन करें अथवा व्यायाम बात तो एक ही है ? पर ऐसा नहीं है दोनों के लाभ अलग-अलग हैं |कई बार आपने सुना होगा कि कुछ महिलाएं अथवा पुरुष ये कहते हैं कि हम दिन भर मेहनत वाला कार्य करते हैं तो हमें अलग से योगसान अथवा व्यायाम करने की क्या आवश्यकता है ? मेहनत वाले कार्य करना व व्यायाम करना दोनों का ऊद्देश्य अलग है | जब हम मेहनत वाले कार्य करते हैं तब हम यह नहीं सोचते कि हम व्यायाम कर रहें है और जब व्यायाम करते हैं तब यह नहीं सोचते कि हम कार्य कर रहें हैं | मेहनत वाले कार्य का सम्बन्ध हमारी आजीविका से है व व्यायाम करने का सम्बन्ध शरीर के स्वास्थ्य से है | हम जिस कार्य को जिस भावना अथवा मन से करते हैं उसका उसी प्रकार का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है | यदि मेहनत वाले कार्य को ही व्यायाम मान लिया जाता तो आज के समय में मजदूरी करने वाला व्यक्ति ही सबसे अधिक स्वस्थ व्यक्ति होता पर ऐसा नहीं है | योगासन व्यायाम की अपेक्षा हर दृष्टी से उत्तम माने जाते हैं |एक ही व्यायाम को देर तक करने से शरीर के अंग थक जाते हैं व पसीना आ जाता है | परन्तु आसन शरीर के प्रत्येक अंग पर प्रभाव डालते हैं अर्थात् शरीर रूपी मशीन की सर्विस का कार्य करता है | दंड बैठक व्यायाम भुजाओं के लिए लाभकारी हैं |दौड़ लगाने से पैरों की मासपेशियाँ मजबूत बनती हैं परन्तु अन्य शरीर के अंग उपेक्षित रह जाते हैं इसके विपरीत आसन करने से शरीर के प्रत्येक अंग में रक्तसंचार बढ़ता है व शरीर बलशाली व स्वस्थ बनता है | आसान तथा व्यायाम करने के उद्देश्य एवम् पद्धति भिन्न है | योगदर्शन में आसन को परिभाषित करते हुए लिखा है 'स्थिरसुखमासनम्' अर्थात् एक स्थिति में स्थिरता से सुख-पूर्वक कुछ काल तक रहने को आसन कहते हैं |आसनों की स्थिति बनाने के लिए प्रयत्न पूर्वक अंग-विशेष का खिंचाव तथा किसी अंग पर दबाब डाला जाता है और उस अंग को शिथिल भी करना पड़ता है |आसनों को झटकें के साथ नहीं किया जाता | व्यायाम करने से शरीर में रक्त का उद्वेग बढ़ता है जिससे शरीर में उत्तेजना बढ़ती है वहीं आसनों के करने से शरीर की उत्तेजना समाप्त होकर मानसिक शान्ति मिलती है , मन की एकाग्रता बढ़ती है व स्वभाव में मृदुता आती है |इसलिए जो व्यक्ति जिम में जाकर कसरत करते है उनके स्वभाव में इस बात का अहंकार होने लगता है कि वे शारीरिक रूप से बलशाली हो गए हैं | हमारे शास्त्रों में लिखा गया है - विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति परेषां परिपीडनाय | खलस्य साधोः विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय || अर्थात् सज्जन व्यक्ति अपनी विद्या, धन व शक्ति का प्रयोग ज्ञान, दान व रक्षा के लिए करता है वहीं दुर्जन व्यक्ति अपनी विद्या का प्रयोग पर अहित में करता है धन होने पर घमंड करता है व शक्ति होने पर दूसरों को परताड़ित करता है | भले ही हम कितने भी बलशाली हो जाएं तथापि हमे अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए | व्यायाम आदि अधिक करने पर हाथ-पैरों की मांस पेंशिया कठोर हो जाती है | इसके कारण वृद्धावस्था में शरीर के विभिन्न जोड़ों में सन्धिवात (गठिया) का दर्द होने लगता है |जिसका कष्ट असह्य होता है | भारोत्तोलन से रीढ़ की हड्डी विकृत हो जाती है |खेल व्यायाय में अधिक समय एवं शक्ति का अपव्यय होता है |आसनों को १५ मिनट से आध घंटे तक करने से शरीर का भली भांति आवश्यक व्यायाम हो जाता है |वर्तमान व्यस्त जीवन में थोडे समय में पूरा होने वाला आसनों का अभ्यास पूर्ण उपयोगी है | इसके सामान अन्य कोई उत्तम साधन नहीं | व्यायाम को रोगी, कमजोर, बच्चे तथा महिलाएं नहीं कर सकतीं, पर आसनों का अभ्यास बच्चे, वृद्ध , स्त्री-पुरुष तथा रोगी असमर्थ सभी कर सकते है |व्यायाम का प्रयोग रोग निवारण के लिए नहीं किया जा सकता है, जबकि आसनों के द्वारा विभिन्न रोगों का उपचार होता है| जो रोग दवा से अच्छे नहीँ होते वे आसनों से अच्छे हो जाते है |नियमित आसन करने से रोग नहीं होते खेल तथा व्यायाम के लिए विशेष स्थान, मैदान, अखाड़ा तथा बल्ले, नैट हाकी आदि अनेक व्यय-साध्य साधनों की आवश्याकता पड़ती है |इसके अतिरिक्त दुसरे खिलाड़ियों की आवश्यकता होती है|पर आसनों के लिए केवल एक दरी आदि की आवश्यकता होती है | अत: स्वस्थ रहने के लिए हमें योगासनों को अपने दैनिक जीवन के क्रियाकलाप में सम्मिलित करना चाहिए |कम समय में योगाभ्यास आदि के द्वारा कैसे स्वस्थ रहा जा सकता है यह जानने के लिए आप हमारी बेवसाईट पर विजिट करें |